सपनों का पर्दा जब जब उठा
सपनों का पर्दा जब जब उठा,
हकीकत से गुफ्तगू तब तब हुआ।
सपनों की दुनिया थी वो नयी,
हकीकत तो कोसों दूर इंतजार में बैठी।
कर्म भी चलता रहा हकीकत की साथ,
कदम उम्मीद की दिशा में ही बढ़ते रहा।
अधूरा सास, अधूरा हकीता, अधूरा सपना
जीवन के पल, लगते हैं अद्भुत और अलग।
जीवन के अद्वितीय पल हमारी यादों में ,
बरस बरस के सावन बदलता गया ।
हर कतरा बूँद गीली मिट्टी की खुशबू में बसी,
भरपूर जीवंत का एहसास दिलाता गया।
कभी खुद को खो बैठते हैं वो पलों में,
हकीकत और सपनों के बीच फाश रह गया।