सपने
हमने सोचा भी न था।।
कुछ ऐसी यह हवा चली।। मैं तो चलती ही रही बेखौफ सपनो की गली।।
शाम होते ही हमें अपना सपना याद आता है।। आंख खुलते ही वो सपना टूटा नज़र आता है।।
कैसे भूलेगे वो शामो सहर की लड़ी ।। मैं तो चलती ही रही बेखौफ सपनो की गली।।
मुझे लगता है ऐसा इक दिन सपना हो जाएगा पूरा।पर किसे पता था यह सपना रह जाएगा अधूरा।।
उस सपने को मैंने आंखों मे संजोए रखा है।। दिल को भी मैं ने अपने सपनो के धागों से पिरोए रखा है।।
याद करके अपने सपनों की वो घडी।। मैं तो चलती ही रही बेखौफ सपनों की गली।।।
कृति भाटिया।