सपने में
विरह के उठते धुंए में शनैः शनैः,
तुम्हारे चेहरे का धुंधलाना।
स्मरण कर-करके तुम्हारा,
साँसों का मेरी रुक-रुक जाना।
दिवास्वप्नों के सतरंगी झूलों में,
अब और न मुझे झुलाना।
सचमुच न आ पाओ प्रिय तो ,
सपने में तो आ जाना।
अनुभूति तुम्हारी रोम-रोम में
अहसास एक अजब अंजाना।
मेरा तुम बिन और तेरा मुझ बिन,
कभी अस्तित्व न मैंने जाना।
यह पता है न आओगे फिर भी,
करे इंतजार दिल दीवाना।
सचमुच न आ पाओ प्रिय तो,
सपने में तो आ जाना।
सीमा पर प्रहरी बनकर,
तुम्हें है अपना देश बचाना।
तुम ने ही है मुझे सिखाया,
दूर रह कर भी साथ निभाना।
मैंने सीख लिया है प्रियवर,
तुम बिन इस दिल को समझाना।
सचमुच न आ पाओ प्रिय तो,
सपने में तो आ जाना।
—रंजना माथुर
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना )