सपने में आई थी नदियां
सपने में आई थी नदियां,
कहने लगी अपनी कहानियां
धरती के आधार कि बातें,
सुर्य, चांद , सितारे ओर रातें कि
माछ, हंस , शंख है बच्चे उसके,
रो रो कर अपना हाल सुनाया,
तुम मानव ने मेरी ममता को खाया,
जिन्दगी कर दिया मेरा हराम
कैसे निर्दय,हो तुम भगवान?
राह रोक कर मेरे,
अंग अंग में घाव किये
कैसा है मानव तुम्हारा??
जीवन जीने नहीं देते मुझे चैन से,
जीवन देती में वरदान में,
फिर भी मारते मुझे
सपने में मेरे कल नदियां आई,
सुन लगी अपनी दुःख भरी दास्तां