सपने जिंदगी सच
सपने जिंदगी सच ।
क्यों गश खाकर गिर पड़े तनहा ,
क्या गुलिस्ता में गुल खिलना भी गवारा नहीं ।
ये रिमझिम मौसम है मर जाने का ,
तुम क्यों गमदिदा हो तुम्हें जीना भी गवारा नहीं ।
कैसे कहोंगे अपने दिल-ए-हालात ,
सुना है तुम्हारे पास अब कोई नया इशारा नहीं ।
गरज बरस कर गुबार भी बैठ गया ,
लोग कहते है आजकल तनहा हो कोई गमगुस्सार भी नहीं ।
तनहा शायर हूँ – यश