सपना
जानती हूँ मैं ,
बहुत कुछ है खोया,
फिर भी हार कहाँ मानी मैंने,
हर रोज़ एक
नया ही सपना है बोया,
रोज़ एक एक सपने का क़द बड़ेगा,
कुछ होंगे मेरे साथ,
कुछ होंगे पूरे,
कुछ रहेंगे आधे-अधूरे,
फिर भी टूटेगी नही आस,
और हर रोज़ इक नया सपना ,
मैं सँजोती रहूँगी,
मैं बोती रहूँगी………