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23 May 2024 · 2 min read

सपना

कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में कुछ ऐसा – देखा।
राजदरबार सजा हुआ था
खचाखच भरा हुआ था।
शान्ति में भी था अजब शोर,
बेसब्री का लग रहा था दौर।
असमंजस में मैं डूबा हुआ था,
भेद क्या है तलाश रहा था।
तांक-झांक में समय बिता रहा था,
पर नहीं चल रहा था कोई जोर ।।
कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में कुछ ऐसा – देखा।
तभी दरबार में छमछ‌माहट हुई,
धीमे धीमे सामने एक लडकी आई ।
नैन नक्श नहीं थे ज्यादा तीखे,
रंग भी लग रहा था गेहूं सरीखे ।
हाथ में उसके वर माला,
जिसने सब भेद खोल डाला।
स्वयंवर के लिए है दरबार सजा,
अरे ? आज भी है क्या यह प्रथा ?
कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में कुछ ऐसा – देखा।
अचानक दरबार में मच गई भगदड़,
हाथा पाई होने लगी – खटाखट।
हर कोई छूना चाह रहा था उसका छोर
आगे बढ़ने की सबमें लग गई होड़ ।।

तू-तू, मैं-मैं का बन गया महौल,
लड़की के चेहरे पर साफ दिखा खौफ़।
दरबार से लड़की पीछे जाने लगी,
चेहरा अपना दुपट्टे से छुपाने लगी।
कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में कुछ ऐसा – देखा।
दरबार की भगदड़ का मैने उठाया लाभ,
चुपके से जा पहुंचा उसके पास ।
धोखे से उसका हाथ सहलाने लगा।
प्यार से उसे – बहलाने लगा।
तभी गाल पर एक धप्पड़ पड़ा,
चक्कर खाकर मैं गिर पड़ा।
होश अपने मैं खोने लगा,
कैसे संभलूं मैं सोचने लगा।
कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में कुछ ऐसा – देखा।
लड़‌की की आवाज मेरे कानों में आई,
क्यों झूठा प्यार तुम जताते हो भाई।
लडकी के भेष में मैं भी लड़का ही हूँ।
लडकी की तलाश में इस भेष में निकला हूँ।
भ्रूण में हो मार कर लड़‌कियों को,
खुद रचा है हमने यह अकाल ।
विश्वास नहीं ? तो देखा टीवी पर,
लड़‌की के भेष में लड़के कर रहे हैं धमाल ।
कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में कुछ ऐसा – देखा।
झटके से मेरा सपना टूटा,
चेहरे से मैंने पसीना पोंछा।
लगा सोचने सपने को बात,
भीतर तक हो गया आघात ॥
गर बेटी के प्रति यहीं रहा हमारा व्यवहार
तो बन जाएँगे सचमुच यही आसार।
मुश्किल से जब पैदा होगा एक अनार
कैसे बांट पाएँगे आपस में सौ बीमार ॥
कल रात के सपने ने झकझोरा,
बस बांट रहा हूँ आपसे थोडा-थोडा
कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में कुछ ऐसा – देखा।।
—-***—‘

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