सन्नाटे को तकिया धुआं को गिलाफ कर लिया
सन्नाटे को तकिया धुआं को गिलाफ कर लिया
हमने आज फिर से “जाना” तुझ को मांफ कर दिया
भटकते रहे देर तक दिल के सर्द गलियों में तन्हा हम
ये रूह की प्यास थी जिसे हमने दरकिनार कर दिया
अपनी खता तुम्हारा जुर्म कुछ भी तो पता न चला
बस नए – नए सवाल खुद के लिए खड़ा कर लिया
झरोखे पे मेरे जो उगा था गुंचा गुलाब का
हमने बड़े प्यार से तुम्हारा नाम था उसे दिया
उदास गुलशन में कई रोज से गुंचे नए नहीं खिले
खुशबू चमन शोखी हिज़्र ए ज़िंदाँ में कैद कर दिया
~ सिद्धार्थ