सन्नाटे का शोर
सूरज की रौशनी मंद हुई
साझ फैली हर ओर
रात का अँधेरा फैलेगा
हर तरफ होगा ,सन्नाटे का शोर।।
हर पथिक के बढ़ने लगे तेजी से
कदम मंजिल के ओर
क्योंकि रात का अँधेरा फैलायेगा
हर तरफ होगा ,सन्नाटे का शोर।।
एक हवा बहने लगी जानी-पहचानी सी
उसका एहसास दिल पर लगा
धड़कने रही अनजानी सी
अचानक दिल में मची एक शोर
ख़ामोशी से फैल गया ,सन्नाटे का शोर।।
एक शीशा छन से टुटा
टूट गयी विश्वास की डोर
एक टीस सी दिल में उठी
फिर मचा सन्नाटे का शोर।।
बंध गयी जाने कैसी
हममे एहसास की डोर
पता न चला कैसे बढे मेरे कदम इस ओर
एक तरफ है सबका विश्वास
एक तरफ तन्हा सा वजूद
किधर पग बढ़ाऊ मै
पागलो सी मै पूछ पड़ी
तू ही बता ए सन्नाटे का शोर।।
खामोशी जैसे सन्नाटे की टूटी
ली जैसे उसने अंगड़ाई
अचानक इस आहट से मै
दिल ही दिल घबराई
पहले तो वो थोड़ी झिझकी
फिर जो शुरू की वो कहना
मै चुप सी बैठ गयी
पलके मेरी मानो जैसे
भूल गयी झपकाना
कहना जो उसने शुरू किया
टुटा न उसकी बातों का डोर
मै बूत सी बैठी सुनती रही
उस सन्नाटे का शोर।।
ईश्वर ने बड़े शौख से
रचना की मानुष देह की
उसके बनाये दो आँख
उन आँखों को दे दिए
देखने को हजारों ख्वाब
पर कोई ख्वाब क्यों अधूरा रहता है
कोई अपना बनकर क्यों
दूर जाने को कहता है
शायद इसलिये की हर पल
कुदरत को तुम याद करो
अपनों की जिंदगी की फरियाद करो
लेके कुदरत का नाम
आगे तो कदम बढ़ाओ
उम्मीद है कि शायद तुम
बढ़ोगे उजाले की ओर
यही सन्देश देता गया
मुझे सन्नाटे का शोर।।