सन्तानों ने दर्द के , लगा दिए पैबंद ।
सन्तानों ने दर्द के , लगा दिए पैबंद ।
झाँक रहे हैं वक्त के, पर्दे से आनन्द ।
लकड़ी की लाठी चले,अब पिंजर का साथ –
सत्य चीर कर आ गए , मोह पंक के फंद ।
सुशील सरना /3224
सन्तानों ने दर्द के , लगा दिए पैबंद ।
झाँक रहे हैं वक्त के, पर्दे से आनन्द ।
लकड़ी की लाठी चले,अब पिंजर का साथ –
सत्य चीर कर आ गए , मोह पंक के फंद ।
सुशील सरना /3224