सनातन और बाबा साहेब
जी हाँ ठीक सुना आपने,
सनातन हमारा जीवन है,
सनातन हमारी जीवनशैली है,
लेकिन क्या तना-तनी और
क्या ताना-बाना है ..
मर्ज क्या है ?
जानने की जरुरत है,
सिर्फ़ उन्हें ?
जिनका दलन हुआ है.
जिस सनातन की वजह से सामाजिक ढ़ांचें में जो मानवता में भेद हुआ है ..
जो खुद को पुरातन वा श्रेष्ठ सिद्ध करता हो,
जिसमें सुधार की अनंत संभावना निहित हो,
जिससे बोद्ध, जैन, सिख नई जीवन-शैली नये आयाम लेकर नये आगाज हुए हो !
जिस पर रैदास, कबीरदास ने भक्ति-आंदोलन काल में पाखंड, अंधविश्वास का कुचक्र तोड़ना पड़ा हो !
भला कैसी श्रेष्ठता ?
पुरातन-शैली नये जीवनीय आयामों पर खरी न उतरे ..स्वाभाविक है ..नये की खोज आवश्यक है ।
जो कथा-कहानियां आज भी सम्मोहित कर गहरी नींद सुलाती हो !
जागृति एवं जागरण के मार्ग अवरुद्ध करती हो !
आज वर्तमान में भी विकास में बाधक हो ..कथा-वाचकों में परमात्मा-तुल्य देखती हो,
एकात्म परमात्मा वाले धर्म जिनसे अग्रणी हो (ईसाई, मुस्लिम, यहूदी)
आज भी हम उस आकाश में बैठे काल्पनिक परमात्मा में आस्था रख
अपने अकर्मण्यता को छुपाते हो ।
हमसे चालाक कोई ओर हो नहीं सकता ।
आज भी हमें सड़क,पानी, बिजली, असपताल जैसी बुनियादी चीजों को छोड़कर मंदिर चाहियें जबकि भारत सनातनी है ।
आज भी हमें अपनी अध्यात्मिकता को खोजना शेष है ।
आज भी हम उस ईश्वरीय प्रकोप से मनुष्य में डर पैदा करते हो ..विद्रोह स्वाभाविक ही होगा ।
आज भी लोग जहाँ लोग मानसिक विक्षिप्त हो,
स्वच्छता का पाठ किसी कार्यक्रम के तहद या कुछ चुनंदा लोगों एवं जाति की जिम्मेदारी से होता हो ।
क्या यही सनातन शैली है ।
जहाँ पर स्त्री वर्ग विशेष को आज भी अपने सम्मान एवं समान अधिकार के लिये और इंसानी इंसाफ के लिये झूझना पड़ रहा हो ।
आज भी इंसानी परिवेश विशेष लोगों को अछूत कहकर धर्म के नाम पर वंचित रखा गया हो.
एक व्यक्ति विशेष जिसने इस देश की महानता के लिये संविधान को ड्राफ्ट कर धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, समानता न्याय एवं कानून वा वित्त-सुदृढ़ीकरण परिप्रेक्ष्य रखा हो ..
उस महान हस्ति को सिर्फ दलित मसीह
आरक्षण के नाम धुधकारना भीमराव आंबेडकर कह देना आधुनिक भारत का निर्माता न मानना
सिर्फ़ सनातनी चाल हो सकती है ।
वे भारत-रत्न वा विश्व में ज्ञान के प्रतीक हैं !
लेखक:- डॉ_महेन्द्र