सनातनी परंपरा
रसोई का चूल्हा हो
या किचेन की गैस
पहली रोटी गाय की
और अंतिम मोती की
मोती, गली का कुत्ता
सबका प्यारा सबका दुलारा
सबके घरों का रखवाला
सबको देख दुम हिलाने वाला
अजनबियों को पास ना फटकने देने वाला
दूसरी गली के कुत्तों को भगाने वाला
दूध वाले को अखबार वाले को
सब्जी फल वालों को इस्त्री करने वालों को
यानी रोजाना आने वाले लोगों को
देख के अभिवादन करते हुए दुम हिलाना
ये सब बीते जमाने की बात हो गई
अब तो शहरी जीवन जीते हैं
घर तो पहले थे अब तो फ्लैट में रहते हैं
परंतु पहली और आखरी रोटी तो आज भी बनती है
पुरानी परंपरा आज भी किचेन में निभाई जाती है
पर ना तो गाय मिलती है और ना ही मोती जैसा कुत्ता
इसलिए
पहली स्त्री की थाली में और अंतिम पुरुष के टिफिन में सजती है
मोती की तरह रोटी खाकर दुम हिलाता है
और स्त्री आज भी सींग दिखा कर डराती है
वीर कुमार जैन ‘अकेला’
10 अक्टूबर 2021