सद्गुरु कबीर
सदगुरु कबीर शीर्षक
किस आंचल में जन्म लिए तुम ,कोई पता नहीं पाया
लालन पालन हुआ जहां पर, पर्णकुटी की थी छाया
शब्ददिश लाचार रहे तुम, दुनिया की नजरों में
पर तुम सबके साथ रहे, यह फैल गई खबरों में……
थे अनेक जन्मों के संचित,भक्त पड़े जीवन में
चकित रह गए मुन्ना पंडित,एक लहर जन-जन में
साँच झूठ जैसा को तैसा, कहना तुमने जानी
धर्म क्षेत्र के तुम विज्ञानी,साक्षी बीजक वाणी………
अनुभव का अमोघ मगर,शास्त्रों का मंथन भारी
निर्भय और निष्पक्ष गिरा, तेरी दुनिया से न्यारी
एक जाति है एक धर्म है,एक तुल्य है आतम
कहा एकता का तुमने है,मानव मध्य महातम………
ज्येष्ठ पूर्णिमा की गर्मी में,आये गर्मी लेकर
फटकारा सारे दंभी को,प्रेम फुआरा देकर
वज्रादप थे कठिन मगर,उस मदाडपि को मल मथा
रहे सत्य के पथिक, सत्यदाता सत्य तेरा धन था……..
तुम थे,तुम ही समान, तुम्हारी वाणी तब वाणी सी
कहे कबीर बेजोड़ सभा में,मध्य सभी ज्ञानी की
आतम तेरा ध्यान रहे,मात पिता गुरु सेवा की
नहीं बड़ा भगवान जगत में,पितरों गुरु छाया से ……….
नमन करो हर माता-पिता को,संसार जन्म फिर होता
ध्यान रहे शुद्धीकरणम् का , शुचि वहीं मानव कहलाता…..
सद्कवि
****** प्रेमदास वसु सुरेखा *******