सदियों से तो दोनों साथ रहे
सदियों से तो दोनों साथ रहे
गुलाब को ख़ार सखा कहे
न खारों ने फूलों से खुशबू लिया
न फूल ने आ चुभ जाऊं तुम्हें कहे
ये संग साथ भी अजब ही कुछ होता है
संग रह प्रकृति न कोई अपनी खोता है
जो फूल हुआ वो कोमल ही सदा रहा
खुशबू हूं हंस कर हरदम हवा से कहे
इस बार सखॆ चुभन त्याग मैं आया हूं
खार न उठ कर कभी फूल से ये बात कहे
ये चुभन और खुशबू की ही बस बात नहीं
संगत का असर न होता है ये प्रकृति कहे
~ सिद्धार्थ