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31 Oct 2020 · 1 min read

सदा सभी को पुकारती है

अज़ान होती या आरती है
सदा सभी को पुकारती है

ये प्यार माँ का दुलार देखो
नज़र कभी माँ उतारती है

करीब सागर के जब वो पहुंची
नदी भी बांहें पसारती है

इसी पे इल्ज़ाम क्यों लगेगा
ये ज़िन्दगी तो संवारती है

चराग़े-उल्फ़त जला के रक्खो
ये रौशनी दिल निखारती है

सुकूँ नहीं है न चैन दिल को
वो आँख जबसे निहारती है

जहाँ ठिकाना है आपका अब
वो दिल का कोना शरारती है

जो आरज़ू वस्ल की है दिल में
हमें सताकर के मारती है

बला की ‘आनन्द’ जिसमें हिम्मत
वही नज़र कुछ संवारती है

– आनन्द किशोर

2 Likes · 550 Views
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