सदाचरण
झुक जाता हूँ मै अक्सर
अपने से बड़े के चरणों मे
सीखी है ये आदत मेने
वृक्षों के पर्णो से
मात पिता मेरे आधार है
गुरुवर मेरा सार है
ना देखी मैने दुनियादारी
मेरा छोटा सा संसार है
धन दोलत और बड़ाई
नही चाहिए रे भाई
धन दौलत से लाख बड़ा तो
हे मेरा प्यारा भाई
प्यारी प्यारी बहना मेरी
खुशियो का संसार
प्यार बरसता उनका मुझ पर
जैसे गंगा धार है
एक सलोना मित्र मिल गया
और क्या चाहूँ में
बिन मांगे सबकुछ मिल गया
और क्या मांगू में
नारी हो तो ऐसी मेरी
जैसे सीता माई थी
कबहुँ दोष न दिया पति को
भले वन वन में भटकाई थी
– पर्वत सिंह राजपूत
(ग्राम – सतपोन )