सत्य से विलग न ईश्वर है
सत्य से विलग न ईश्वर है,
सत्य ही तो परमेश्वर है।
सत्य तो सत्य नारायण है,
वही तो अविनाशी अक्षर हैं।
सत्य आदि है सत्य अन्त है ,
सत्य विभु और दिग-दिगंत है।
सत्य सतत जीवन दर्शन है ,
ऋतुओं में भी वह वसंत है।
सत्य निरंजन, निराकार है,
कामना रहित निर्विकार है ।
खुल जाती जब अंतः दृष्टि,
तब होता सत्य साकार है ।
वह तो अकल,अनीह, अभेद है ,
वह गुणातीत और वेद है ।
मिलता है वह सदा उसी को ,
मन होता जिसका अभेद है ।
सत्य दया, प्रेम, करुणा है,
मानवता इसका गहना है।
जिसे यह बात समझ नहीं आती,
उसे संताप सतत सहना है।
सत्य खोज नहीं अनुभूति है,
जीवन की एक विभूति है।
हो जाता साक्षात्कार जिसे ,
उसे तो मिल जाता मोती है।
सत्य , सत्य है ; जग असत्य है,
सत्य असत्य में सत्य विभक्त है।
ये दोनों हीं अन्योन्याश्रित,
वेदान्त में यही सत्य व्यक्त है।
उदय नारायण सिंह
मुजफ्फरपुर, बिहार
6200154322