सत्य विचार (पंचचामर छंद)
यही विचार सत्य है कि भाव ही प्रधान है।
धनी वही सुखी वही जिसे यही सुज्ञान है।
धनिक समझ उसे नहीं पिपासु जो अनर्थ का।
गवा रहा स्वयं सदा निजी जमीन व्यर्थ का।
पढ़ो वही सुकल्पना जहां स्वभाव रम्य है।
गढ़ो वही सुशासना जहां प्रभा सुरम्य है।
नढ़ो नवीन बंधना भला करो बुरा नहीं।
चढ़ो अनंत शैल पर अमी बनो सुरा नहीं।
शराब आत्मज्ञान का कुधान्य को पियो नहीं।
अमर्त्य हो असीम हो कुकर्म को जियो नहीं।
सदा रहो सुगर्मजोश दिल दरिंदगी नहीं।
जहां नहीं हृदय प्रफुल्ल है न जिंदगी वहीं।
जहां कहीं कटील राह पंथ को संवार दो।
चलें सभी सुडौल चाल स्नेह नीर धार दो।
कड़क नहीं मधुर वचन सदा बहार बन बहे।
न निंदनीय याचना करे मनुज कभी कहे।
साहित्यकार: डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी