सत्य दृष्टि (कविता)
संसार में सत्य कोई वस्तु नहीं है
सत्य दृष्टि है।
देखने का एक ढंग हैं
एक निर्मल और निर्दोष ढ़ंग।
एक ऐसी आँख जिस पर पूर्वाग्रहों का पर्दा ना हो
एक ऐसी आँख जिस पर कोई धुँआ ना हो
एक ऐसी आँख जो निर्विचार हो।
एक ऐसी आँख जो असमान दृष्टिकोण ना रखती हो।
संसार मे कोई हिन्दू है, कोई मुसलमान है,
कोई सिख हैं तो कोई ईसाई हैं।
यदि आप इनमें से कोई हो
तो आपकी आँख सत्य नहीं हो सकती हैं।
जब आप धार्मिक विशवासो के माध्यम से
देखने की कोशिश करते हो
तो तभी सब असत्य हो जाता हैं।
तब तुम वही देखते हो, जो तुम देखना चाहते हो,
वह नहीं जो वास्तव मे हैं।
देखना है उसे जो सत्य हैं,
इसमे सबसे बड़ी मुसीबत हमारे पैदा होते ही शुरू हो जाती हैं
हमारी आँखों पर पर्दे पर पर्दे और पर्तो पर पर्त
चढ़ा दी जाती है, धर्म-कर्म की, रंग-ढंग की
और जातीय श्रेष्ठता की समाज रूपी अस्त्र के द्वारा।
यदि सत्य को सत्य की तरह देखना है
मानव को मानव की दृष्टि से देखना हैं तो
आँख निर्मल होनी चाहिए।
पक्षपात शून्य होनी चाहिए।
पूर्वाग्रहों से मुक्त होनी चाहिए।
प्रकृति प्रेमी होनी चाहिए।