सत्य को स्वीकार लो
#चयनित_पगडण्डी ? #इसीलिए_खड़ा_रहा… ( हरिवंशराय बच्चन जी)
#विधा ? छंद मुक्त कविता
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सत्य को स्वीकार लो
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इसीलिए खड़ा रहा कि, सत्य को स्वीकार लो।
पाप क्या और पुण्य क्या, मन में विचार लो।।
राष्ट्र का तू ध्यान कर,
प्रकृति का सम्मान कर।
मिटती मानवता का,
कुछ तो तू ख़याल कर।
मन के इस दग्धता को, फिर से विचार लो।
इसीलिए खड़ा रहा, कि सत्य को स्वीकार लो।।
वृक्ष को न काटना,
न देव को ही बाँटना।
इस जहां में धर्मवार ,
मनुज को न छाँटना।
धर्म है मानवता क्या? इसको विचार लो।
इसीलिए खड़ा रहा , कि सत्य को स्वीकार लो।।
जात – पात, वर्ग – भेद,
राष्ट्र से बड़ा नहीं।
धर्म वही जानता,
जो इसपे अड़ा नहीं।
राष्ट्र के निर्माण का तुम , मंत्र ही उचार लो।
इसीलिए खड़ा रहा, कि सत्य को स्वीकार लो।
देवों के अंश हो तुम,
रक्षक सद्भाव के।
आज क्या हुआ जो बने,
भक्षक स्वभाव से?
देवता औ दानव में, फर्क तो विचार लो।
इसीलिए खड़ा रहा कि सत्य को स्वीकार लो।।
आपस में भेदभाव,
कैसी विडंबना है।
मान मिट रही बड़ों की,
कैसी प्रवंचना है।
वेद व पुराण को तुम, हृदय से उचार लो।
इसीलिए खड़ा रहा कि, सत्य को स्वीकार लो।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
पूर्णतया मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित
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मुसहरवा ( मंशानगर )
पश्चिमी चम्पारण
बिहार– ८४५४५५