सत्य की खोज
सत्य खोजने चला फकीरा, फिरता मारा-मारा।
मकड़जाल में फँसा हुआ वह, घूम रहा जग सारा।
स्वयं न अंतर्मन में झाँके,न स्वयं को पहचाने।
सच की पगड़ंडी पर घूमे, मगर न उसको जाने।
दुनिया के मायावी रंगों में, उलझ रहा बेचारा।
सत्य खोजने चला फकीरा, फिरता मारा-मारा।
गिर-गिरकर संभला उठा वह,बढ़ा विवेकी बनकर।
प्रमुदित प्रभुवर का गुण गाया,भक्ति-भावना भर-भर।
बार-बार उम्मीदें टूटी,मगर नहीं वह हारा।
सत्य खोजने चला फकीरा, फिरता मारा-मारा।
अगम मार्ग पर चला निरंतर, सही गलत को जाना।
कठिन परीक्षाओं से गुजरा, नहीं हार वो माना।
सूर्य सत्य का निकल पड़ा फिर, छटने लगा अँधेरा।
सत्य खोजने चला फकीरा, फिरता मारा-मारा।
भव्य भावना आत्म-शक्ति से,सत्य नजर में आया।
अध्यात्म साधना के द्वारा, जीवन सफल बनाया।
नहीं भटकता अब मन उसका, पाकर दिव्य नजारा।
सत्य खोजने चला फकीरा, फिरता मारा-मारा।
अंतर्मन में सच्चा अनुभव, शाश्वत आकाश मिला।
बन गया सत्य का दीपक वह, पथ प्रखर प्रकाश मिला।
जहां फकीरा अब जाता है, फैलाता उजियारा।
सत्य खोजने चला फकीरा, फिरता मारा-मारा।
सत्य चक्रव्यूह वही भेदता, जो खुद को अपनाता।
गरल सुधा का घूट पिया जो, मन मंथन कर पाता।
धीरज-क्षमा आत्मसंयम से, सत्-चित को स्वीकारा।
सत्य खोजने चला फकीरा, फिरता मारा-मारा।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली