सत्य की खोज:स्वयं का सत्य।
सत्य की खोज,सत्य में कौन करता है।
सत्य कहकर स्वयं में असत्य भरता है।
सत्य की खोज,स्वयं से ही आरम्भ होती है।
बाहरी आवरण से न कभी प्रारम्भ होती है।
स्वयं से चलकर;स्वयं तक पहुँच, स्वयं को पाना है।
सत्य की खोज की यही राह, यही तानाबाना है।
अपनी बुराई जब जानते नहीं।
तब बुराई को बुराई मानते नहीं।
इंसान हैं तो कमी होगी,अवगुण होंगे।
गलतियों के पुतले में क्या…
गुण ही गुण होंगे?
जैसे हैं हम कमजोर ख़ुद में तो,दूजा भी है।
ये सत्य वही समझे,जिसने इंसानियत को पूजा भी है।
ईश्वर सबका,सब उसकी सन्तान हैं।
सब में वही प्रकाश,वही जान है।
समता,मानवता जो अपनाता है।
वही मनुष्य सत्य को पाता है।
सत्य की खोज है प्रेम,एक भक्ति है।
मानवता से प्रेम,सत्य की शक्ति है।
सत्य स्वयं में है, सत्य मन में है।
धरा में भी सत्य,सत्य गगन में है।
सत्य की खोज मन,वाचाऔऱ कर्म से करो।
समभाव रखकर सभी में, एक ही मर्म से करो।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78