सत्य का संवाहक है साहित्यकार
साहित्य साधना है,
याचना नहीं |
साहित्य साधना है,
उस अनाम तक पहुँचने की |
कल्पना के पंख लगाकर –
अंनत ब्रह्माण्ड में विचरने की |
सृजनकार के साथ एकाकार होने की |
निराकार को साकार करने की |
अंतस को प्रभुप्रेम की –
पराकाष्ठा तक पहुँचाने की |
अध्यात्म के उच्च शिखर को छूने की |
फिर साहित्यकार याचना क्यों करे,
नाम-यश की कामना क्यों करे,
अपयश से क्यों डरे |
याचक नहीं है साहित्यकार,
जो गरिमा को भूलकर वोट मांगे –
दोनों हाथ पसार |
सत्य का संवाहक है साहित्यकार,
सत्य जो स्वतः सिद्ध है,
उसे किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं,
जो स्वीकार्यता-अस्वीकार्यता की –
सीमा में आबद्ध नहीं |
साहित्यकार सत्य-सलिल-सरिता है,
जो कभी भी घड़े तक नहीं जाती,
बल्कि घड़ा उसतक आता है,
मीठे जल की याचना लेकर ,
और वह तृप्त होती है,
उसे अपना सर्वस्व देकर |
– हरिकिशन मूंधड़ा
कूचबिहार
२२/११/१८