सत्य का ध्येय ।
उमंग की लहरे,
हिलोरे लेती,
छू लेने को आसमान ,
बहता रुधिर नस-नस में तेरे,
रोको न तुम तनिक भी,
फूटने दो ज्वालामुखी सा,
दबी हुई है अंदर भड़ास,
बर्दाश्त की सीमायें तोड़ दो,
बना लो उसको अपना हथियार,
उद्देश्य को अपनी दिशा दो,
उत्सुकता से जुट जाओ,
भूल जाओ खुद में,
क्या खोया था तुमने,
और क्या-क्या खोना है बाकी,
याद रहे पाया नहीं है वह,
पाने को उसको याद करो,
सत्य वहीं है जो हृदय में है,
दिख रहा है वही लक्ष्य है,
हो जाओ अब उसी पक्ष में,
सत्य को अपना ध्येय बना लो।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।