‘सत्या की दीपावली’
‘सत्या की दीपावली’
दीपावली का त्योहार आ गया था।सत्या के खेत बादल फटने से बाढ़ से खराब हो चुके थे। फसल कुछ बह गई कुछ कीचड़ गारे में दब गई थी। खेत में बना कच्ची मिट्टी का घर भी ढह गया था। थोड़ी बहुत जमा पूँजी घर को ठीक करवाने में लग गई।
उसे लग रहा था इसबार बच्चों की दीपावली कैसे मनेगी।उसने सोचा, प्रधान जी से थोड़ा उधार माँगकर देखता हूँ बच्चों की दीवाली मन जाय फिर प्रधान जी के खेत में काम करके उधार चुका दूँगा।
सत्या सकुचाते हुए प्रधान के घर पहुँचा। प्रधान जी की श्रीमती जी नौकरानी पर चिल्ला रही थी।छुट्टी जो कर ली थी उसने। इस मुई को आज ही छुट्टी करनी थी।आज नरक चतुर्दशी है।घर की गंदगी निकाल कर साफ-सफाई भी तो करनी थी। यम के नाम का चौमुखा दीप भी तैयार करना था। अब कौन करेगा ये सब ? इन छोटे लोगों की समझ भी छोटी ही होती है। अजी सुनते हो!जाओ उसके घर अभी बुलाकर लाओ उसे। प्रधान जी की पत्नी ने गुस्से से पति से कहा।
प्रधान जी मुस्कुराते हुए बोले, अरी भागवान तुम्ही करलो न आज साफ-सफाई! वो भी तो अपना घर साफ कर रही होगी। पहले अपने मन में छुपे नरकासुर नामक सोच को तो खत्म करो। हमारी बुरी सोच भी तो नरकासुर ही है। प्रधान की पत्नी झीखकर बोली, “अरे इन लोंगो के पास घर ही कितना होता है जिसे साफ करें । एक झोंपड़ी ,चार बर्तन और दो जोड़ी कपड़ा हुँ।” सत्या की जैसे किस्मत ही खुल गई। उसे उम्मीद थी उसका काम हो जाएगा उसनेआँगन में सब सुन लिया था।
उसने प्रधान जी को आवाज दी।प्रधान जी को सारी बात बताई और थोड़े पैसे उधार देने की प्रर्थना की। उसने प्रधान जी से कहा, कि वो उसके बदले खेतों में उनका कुछ भी काम कर देगा।
प्रधान जी ने पत्नी से कहा, सुनती हो ! तुम्हें जो भी सफ़ाई का काम करवाना हो सत्या को समझा दो। सत्या ने प्रधानी का बताया हुआ सारा काम कर दिया और संध्या के लिए यम दीपक भी तैयार करके रख दिया। प्रधान जी ने दो हजार रूपए सत्या को दिए और कहा जाओ बच्चों की दीपावली के लिए कुछ ले लेना। शाम को सत्या ने भी सपरिवार घर की सुख-शांति के लिए पूजा की और यम से परिवार की लंबी आयु की प्रार्थना की। उसने बच्चों के लिए कुछ मिठाई और फूलझड़ी भी खरीदी।
उसके मुख मंडल पर गहरा संतोष झलक रहा था। आखिर उसकी दीपावली जो मनने वाली थी।
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