सत्याग्रह का दर्शन-पुस्तक समीक्षा
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर गहन चिंतन किया, साथ ही भारतवासियों के हित के लिए जो अंग्रेजों द्वारा यातनाएँ झेलीं व जो बलिदान उन्होंने जनमानस को आजाद कराने के खातिर दिए उनका वर्णन करना ‘सूर्य को दीपक दिखाने’ के समान होगा। गाँधीजी की मूल भाषा गुजराती थी फिर भी वे हिन्दी को मातृभाषा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने के लिए दिन-रात प्रयासरत रहे।
द्वयसम्पादक डॉ. एच.एन.व्यास व डॉ. बी.एल. आर्य ने ‘सत्याग्रह का दर्शन’ में कुल इकतीस अध्याय शामिल किए हैं जिनमें सुधी पाठकों को न केवल गाँधीजी के व्यक्तित्व व कृतित्व से सम्बन्धित जानकारी करवाई है, बल्कि उन तथ्यों को गहनता से रू-ब-रू करवाया है जो हमारे दिलों में राष्ट्र के प्रति घूमते रहते हैं।
‘सत्याग्रह कभी हारता नहीं, लेकिन जिन्हें सत्याग्रह करना नहीं आता वे अवश्य हारते हैं।’ गाँधीजी के उक्त उपदेशानुसार सत्य की राह पर चलना मुश्किल है परन्तु असंभव नहीं। ऐसे सैकड़ों उपदेशों को भिन्न-भिन्न अध्यायों में भावार्थ सहित सुसज्जित कर मूल पुस्तक का जो संपादन किया है।
उक्त अनमोल पुस्तक में जहाँ एक ओर सत्याग्रह का स्पष्टीकरण किया है तो दूसरी ओर सत्याग्रह की विशेषताओं के साथ-साथ ‘सत्याग्रह की शक्ति’ और ‘भारत में सत्याग्रह’ द्वारा बीते समय का पूरा विवरण पेश करने का प्रयास अति सराहनीय व प्रशंसनीय है।
‘सत्याग्रह का दर्शन’ अनमोल पुस्तक न केवल पढऩे बल्कि संग्रहणीय व उपहार स्वरूप भेंट योग्य भी है।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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