सत्यपथ
लेकर मशाल अब कौन अड़ा है।
परिवर्तन को अब कौन जड़ा है।।
मंत्र बता मिल जाते किस ओर ,
सह लेते है, अब करते ना शोर,
अन्याय विरोध बजाय बिगुल,
जान हथेली रख कौन लड़ा है ।। लेकर मशाल—
बह जाते है सब धारा दिशा में,
चले जाते है सब घुप निशा में ।
सत्य पथ कौन दिखाए सबको,
चेतक अश्व पर अब कौन चढ़ा है ।। लेकर मशाल—
उगते सूरज के सब संग गामी,
बन जाते उनके हो कोई नामी।
चेहरा ही दिखता चरित्र का क्या,
पर्दा हटा देख सच कहाँ पड़ा है ।। लेकर मशाल—
सुधारवाद की होती बाते हजार ,
पहन लेते चोला, होता तन्त्र ज़ार।
बदलाव धुंआ, अर्थ बल सामने,
वो सत्य पथ अब कहाँ बड़ा है ? लेकर मशाल—
विश्वास है कि कोई युग बदलेगें,
इस विराम में कहाँ राम मिलेगें।
प्रत्यंचा सत्य की चढ़ा जाए अब,
‘लहरी’ ऐसा धनुष कहाँ खड़ा है।। लेकर मशाल—
(कवि डॉ शिव ‘लहरी’)