सत्यनारायन की कथा
सत्यनारायन की कथा
कथावाचक पंडित की
पूजा विधि से,
तंग आकर,
तिलमिलाकर |
दस यजमान
भाग गए,
‘कुल मिलाकर ||’
यह कहते हुये,
कि,
हम तो चले |
जिससे बाद में
यह न कहना पड़े,
कि,
‘होम करते हाथ जले ||’
क्योंकि,
पंडित कभी कहता था,
‘आग में,
घी डालें|’
तो कभी
कि
‘पानी सिर के ऊपर’
फिरालें ||
फिर पंडित कहता,
जो भी आपके हाथ है,
उसे अग्नि कुंड में
झोंक कर, स्वाहा करेंगे |
जिससे,
अग्निदेव प्रसन्न होकर,
आपका हर वह काम,
पूर्ण करेंगे,
जिसे आप चाहा करेंगे ||
और जब पंडित ने,
विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ
करने को कहा तो
यजमानों को,
कड़ी दुविधा हुई |
आंग्ल भाषा प्रेमी यजमानों को,
संस्कृतनिष्ठ श्लोकों को,
पढ़ने में,
बड़ी असुविधा हुई ||
हद तो जब हो गई,
जब पंडित कहने लगा,
अब आप
‘सुपारी लीजिये,’ और
‘धूप’ जलाइये |’
अंत में तो यहाँ तक
कह दिया
कि,
अब आप
तिल-मिलाइये ||