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6 Feb 2021 · 1 min read

‘सत्ता-प्रहरी’

सुना न देखा आज तक,
राजा बोबै शूल |
सत्तामत्त प्रमुख जी,
राज-धरम गये भूल ||

बनी बनाई मिट गई,
राजन सिगरी बात |
उँगली ऊँची कर रहे,
जिनकी न औकात ||

सत्ता के भूखे प्रहरी,
जनता की झूठी शान |
बाहर तूती बोल रही,
अंदर सूखत प्रान ||

हठधर्मिता अजब है,
गजब तुम्हारा काम |
गजब मिथ्या देश-प्रेम,
देश किया बदनाम||

कीले काले कलह के,
काले कंटक काल |
जुमले जमा जमाकर,
जुम्मन हुए निहाल ||

अब सिखाया आपने,
फूलहिं मिलते शूल |
फूलहिं फूल जो ढूँढ़ते,
मिले न उनको धूल||

जो तुझको फूलहिं चुनै,
चुन तू उसको शूल |
युक्ति नव जगत इह,
‘मयंक’ ना जाना भूल ||

✍ के. आर. परमाल ‘मयंक’

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 335 Views
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