‘सत्ता-प्रहरी’
सुना न देखा आज तक,
राजा बोबै शूल |
सत्तामत्त प्रमुख जी,
राज-धरम गये भूल ||
बनी बनाई मिट गई,
राजन सिगरी बात |
उँगली ऊँची कर रहे,
जिनकी न औकात ||
सत्ता के भूखे प्रहरी,
जनता की झूठी शान |
बाहर तूती बोल रही,
अंदर सूखत प्रान ||
हठधर्मिता अजब है,
गजब तुम्हारा काम |
गजब मिथ्या देश-प्रेम,
देश किया बदनाम||
कीले काले कलह के,
काले कंटक काल |
जुमले जमा जमाकर,
जुम्मन हुए निहाल ||
अब सिखाया आपने,
फूलहिं मिलते शूल |
फूलहिं फूल जो ढूँढ़ते,
मिले न उनको धूल||
जो तुझको फूलहिं चुनै,
चुन तू उसको शूल |
युक्ति नव जगत इह,
‘मयंक’ ना जाना भूल ||
✍ के. आर. परमाल ‘मयंक’