~~~सत्ता का लोभ या अभिमान ~~~
बड़े बड़े सूरमा
गिर गए अपने गरूर से
नजर जो न मिला के चले
जनता के वो सरूर से..
कहते थे कि
कभी कुछ नहीं बिगड़ेगा
आ गए थे वो
अपने खुद के गरूर में…
चूर कर दिया
पल में सब ने मिलकर
कितने ही ही को
वकत के मगरूर से…
हांसिल करो सत्ता
खुब भोगो भी उसको
अपने लिए नहीं,
सोचो जनता के मंजूर को …
अभिमान करोगे
तो चकनाचूर हो जाओगे
मिलकर चलना नेताजी
सबका ले लो बीते हुए
सत्ता के गरूर से…
क्या करोगे, क्या नहीं
अब है बस तेरे हाथ में
मिलकर चलना सबके साथ
यह कहना मुझ को जरूर है …
अजीत कुमार तलवार
मेरठ