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4 Dec 2023 · 1 min read

*सत्ता कब किसकी रही, सदा खेलती खेल (कुंडलिया)*

सत्ता कब किसकी रही, सदा खेलती खेल (कुंडलिया)
________________________
सत्ता कब किसकी रही, सदा खेलती खेल
साथी बदले नित्य यह, करे नए से मेल
करे नए से मेल, नए गद्दी पर आते
जो अभेद्य थे दुर्ग, एक क्षण में ढह जाते
कहते रवि कविराय, पेड़ पर जैसे पत्ता
पीला पड़ता रोज, बदल जाती फिर सत्ता
————————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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