सत्कर्म करें
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें,
हर पल दम तोड़ते इरादे,
वो चालाक हम सीधे सादे,
हम सेवक वो थे सहजादे,
बचपन की वो सब अवसादें, याद करूं क्यूं……
क्या बचपन क्या कहें जवानी,
पेट था खाली पर मुंह में पानी,
हरपल चलने-जलने की निशानी,
हम दंपत्ति थे, वो थे राजा रानी,
कर्मों की यह निर्दई कहानी, याद करूं क्यूं….
हम सच थे वो समझदार थे,
वो बड़ ज्ञानी हम गवार थे,
हम पैदल थे वो घुड़सवार थे,
वो छलिया हम वफादार थे,
हर पल जो खाते झूठी शपथे, याद करूं क्यूं ….
मृत्यु एक दिन आनी सबकी,
ये है अटल व्यवस्था प्रभु की,
सभी चढ़ेंगे भेंट आग की,
नहीं बचेगी औकात खाक की,
होगी केवल बात सत्य की
कौन करेगा बात पाप की
दंभ भरी जो बात आपकी, याद करूं क्यूं……
“Jai Siyaram”