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31 Jul 2019 · 1 min read

” सताने लगे हैं ” !!

ग़ज़ल / गीतिका

बाते ही बातें , बनाने लगे हैं !
यादों में अकसर , सताने लगे हैं !!

अवसर को खोना , नहीं जानते वे !
सोये जो उनको , जगाने लगे हैं !!

दुश्मन की नीदें , उड़ाई तभी तो !
नज़रों में सबकी , समाने लगे हैं !!

मौके पे चौका , सदा मारते हैं !
जितने भी आये , ठिकाने लगे हैं !!

लोगों की सेवा , इबादत कही है !
मिल जाये ऐसे , ज़माने लगे हैं !!

बदला है कुछ कुछ , रहा कुछ बदलना !
दिन जो भी आये , सुहाने लगे हैं !!

आँखों में सपने , जगाये सदा ही !
अंधों को लाठी , थमाने लगे हैं !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

1 Like · 298 Views
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