एक सन्त: श्रीगुरु तेग बहादुर
सतलोक से उतरा एक सन्त,
गुरु तेग बहादुर कहलाया।
कर तेग लिये तन वेग लिये,
अन्याय मिटाने को आया।
हरिरूप थे नववें पातशाह,
हरिनाम जपाने आये थे।
मिटे जीवन मृत्यु की चौरासी,
हरिधाम दिखाने आये थे।
शासक का जुल्म चरम पर था,
पीड़ित थे सारे नर नारी।
अन्याय खिलाफत में सतगुर,
प्रतिकारा जो अत्याचारी।
इस्लाम नहीं खुद अपनाया,
लोगों में आप मिशाल बने।
परमारथ में बलिदान दिया,
गुरु हिन्दुस्तां की ढाल बने।
भारत के सारे जन मन में,
गुरु तेग बहादुर आदर थे।
जनहित में निज बलिदान दिया,
वे हिंदुस्तां दी चादर थे।
तेरी कुर्बानी के कारण,
ये भारत ऋणी तुम्हारा है।
हे सन्त शिरोमणि तेग गुरु,
कर बांधे नमन हमारा है।
सतीश ‘सृजन’