***** सतबीर गोयत की सेवानिर्वति पर ****
***** सतबीर गोयत की सेवानिर्वति पर ****
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सेवानिवृति की बेला पर सेवा का क्या दाम दूँ,
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ।
माँ छन्नो देवी ने कोख से जन्मा सुंदर लाल था,
5 मार्च 1965 का दिन बहुत मनोरम काल था,
पिता रणजीत सिंह खुशियों से मालामाल था,
गांव जै जैवंती में बधाईयों से मचा धमाल था,
वहाँ की पावन मिट्टी को नतमस्तक प्रणाम दूँ।
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ।
वर्ष 1992 में शिक्षा जगत में नौकरी थी पाई,
विज्ञान शिक्षक के रूप मे शुरु की नेक कमाई,
तन -मन से अध्यापन कर करी समाज भलाई,
मास्टर से हैडमास्टर के पद पर तरक्की पाई,
तुम्हारे अथक प्रयासों को मै न कहीं विराम दूँ।
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ।
अंध्यापक संघ में शामिल होकर चेतना जगाई,
सरकारी फरमानों के खिलाफ आवाज उठाई,
सत्ता पे आसीन जनों की रातों की नींद उड़ाई,
यूनियन के विभिन्न पदों पर जिम्मेदारी निभाई,
जिज्ञासु संघर्षशील सच्चे योद्धा का मै नाम दूँ।
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ।
संघर्ष के आगे जीत ही होती दिया यही नारा,
मुश्किल पथ पर चलकर कभी न हिम्मत हारा,
आंदोलन की राह पकड़कर जोर लगया सारा,
सरकारी महकमे बचाने हेतु काम किया न्यारा,
बहुत किया है काम अब थोड़ा सा विश्राम द्दूँ।
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ।
आर पार की टककर मे हौसला न कम किया,
चौगिर्दे घेर कर सरकार की नाक मे दम किया,
विजय पताका फहराने बड़ा ज्यादा श्रम किया,
सच्ची निष्ठा से जीवनभर यूँ अपना कर्म किया,
बड़ी लड़ी जंग जन-गण की अब तो आराम दूँ।
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ ।
भरतार बन भार्या का सारथी का फर्ज निभाया,
मान मर्यादा मे रहकर कुटुंब सम्मान भी बढ़ाया,
उतार चढ़ाव भरे जीवन में जग मे नाम कमाया,
पिता की रीत निभाकर बच्चों को खूब पढ़ाया,
गर्म हवा न छू पाये दामन हर हसीन शाम दूँ।
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ।
गोयत सरीखे दबंग नेता की है कोई रीस नहीं,
मनसीरत करे कविताई उनपर भारी बीस नहीं,
वक्त आया सेवानिर्वती का है मिटती टीस नहीं,
निर्भय हो कर लड़ी लड़ाई ली कोई फीस नहीं,
जन शिक्षा अधिकार मंच योद्धा को ईनाम दूँ।
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ।
सेवानिर्वती की बेला पर सेवा का क्या दाम दूँ।
सतबीर गोयत के जज्बे को दिल से सलाम दूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)