सड़क
सड़क
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सोनू, मोनू, राज और टींकू चारों में गहरी मित्रता थी। चारों मित्र एक साथ खेलते-कूदते और साथ साथ विद्यालय आते जाते थे। शरारत करने में कोई किसी से कम नहीं था।
एक दिन की बात है। विद्यालय से छुट्टी के वक़्त चारों घर की तरफ जा रहे थे। रास्ते में एक सड़क पड़ती थी, जिसको पार कर घर की तरफ जाने का रास्ता था। विद्यालय वापसी के समय सड़क पर फेंककर खूब हँसते थे, सिर्फ इस बात पर कि अब तक कितनी गाड़ियाँ पक्चर हुईं। ये काम चारों रोज करते थे।
सड़क किनारे बहुत से पेड़ पौधें लगे थे। प्रत्येक दिन की तरह वह आज भी चारों कुछ देर के लिए उसमें छुप गये और सड़क पर कुछ नुकीली कील फेंककर देखने लगे कि देखें, आज किस की गाड़ी पक्चर होती है? तभी अचानक एक गाड़ी रूकी, जिसकी पहिये में बहुत सी कीलें लग गयी थीं। कीलें लगने से गाड़ी पक्चर हो गयी। चारों मित्र देखने लगे। तीन मित्र जोर-जोर से खूब हँसे कि आज तो नयी-नयी बाइक पक्चर हो गयी। पर मोनू नहीं हँसा। वह दुःखी था क्योंकि वह बाइक मोनू के पिताजी की थी।
वह अपने पिता को दुःखी देखकर बहुत परेशान होकर रोने लगा। अपने मित्र को रोता देख सभी परेशान हो गये। सोनू बोला-, “हम लोग रोज हँसते थे। कभी सोचा नहीं था कि छोटी सी कील की शरारत से कोई रो भी सकता है। हम सब इसे खेल समझकर खेलते थे, पर आज विश्वास हो रहा है कि हम सब गलत काम करते थे। टीचर हमे प्रतिदिन सिखाते हैं कि हमें किसी को दुःख नहीं देना चाहिए। कोई देखे न देखे, पर ईश्वर देख रहा है।
चारो मित्रों ने ईश्वर से माफी माँगते हुए निश्चय किया और आपस में प्रतिज्ञा की कि-, “अब वे कोई गलत काम नहीं करेंगे। अच्छे काम करके आगे बढ़ेंगे।
पढ़-लिखकर सभी के काम आयेंगे और जीवन के सच्चे आनन्द को प्राप्त करेंगे। आज तक हमने बहुत से लोगों को दुःख दिया है। अब हम लोगों की खुशियों का ध्यान रखेंगे।” ऐसा निश्चय कर चारों मित्र घर लौट आये।
शिक्षा-
हमें किसी को भी मन, वचन और कर्म से दु:खी नहीं करना चाहिए, अन्यथा एक दिन हमें उसका परिणाम भुगतना पड़ता है।
शमा परवीन
बहराइच (उत्तर प्रदेश)