सड़क का संघर्ष अब संसद में दिखा
सड़क का संघर्ष संसद में दिखा
बेबसी संसद की ये अच्छी लगी
सवालों में घिरा औचित्य इसका
ये सोचने को विवश करने लगी
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कागज़ों के गोला बनाते फेंक देते
चिल्ल-पों चारों तरफ मचने लगी
आकांक्षा की ठौर है संसद हमारी
बाजार मछली सी ये दिखने लगी
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संवाद का सिलसिला अब बन्द है
हर किसी को बात ये खलने लगी
माहौल में वीरानगी अब इस तरह
सदन की खाली कुर्सियां रोने लगी
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न दिख रहा नियमों से पाबन्द कोई
धज्जियां हर नियम की उड़ने लगी
भाषणों से भूकंप आया है सदन में
हैं संसद की दीवारें भी हिलने लगी
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हैं बच्चों जैसी हरकतों की टिप्पणी
हर किसी के मन को अब छूने लगी
बहस का अंदाज अब आया नया है
सदन के बाहर अब बहस होने लगी
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संसद को बंधक बनाने के लिए अब
हर दलों में होड़ एक सी दिखने लगी
कुर्सियों को छोड़ हैं वो बढ़ रहे आगे
है मल्ल युद्ध की तैयारियां होने लगी
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– रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’