सड़के अंतहीन
अंतहीन सड़कें
कहाँ आरंभ
कहाँ अंत
पता नहीँ
आड़ी तिरछी
ऊँची नीची
मुकाम तलक
पहुँचाती सड़कें
चौराहे गुमनाम
पगडंडी और
गलियाँ बदनाम
मिले थे किसी
सड़क किनारे हम
किसी दौराहे पर
एक तरफ तुम गये
एक तरफ हम
फासले बढते गये
हर मोड़ पर
मुड़ते गये
अंतहीन सड़क पर
चलते रहे
उदासीन
उपेक्षित
था यह
मौड आखिरी
दिख गये तुम
गले लग गये हम
मुकाम की
तलाश में फिर
आगे बढ़ गये हम
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल