*सजा माफी का निवेदन (कहानी)*
सजा माफी का निवेदन (कहानी)
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मरने के बाद सरकारी दफ्तर के एक बाबू को नर्क मिला । स्वाभाविक था । मिलना भी चाहिए था । पूरी जिंदगी रिश्वत लेते हुए बीती थी । जब नर्क में पहुँचे थे तो बेचारे बहुत दुखी हुए । कहने लगे “हमें तो पता ही नहीं था कि रिश्वत लेने का परिणाम नर्क भोगना होता है ,वरना हम नहीं लेते ।”
नर्क के व्यवस्थापक महोदय ने उन्हें डाँटा ” झूठ मत बोलो । पृथ्वी पर सबको पता है कि रिश्वत लेने का परिणाम नर्क भोगना होता है ।”
सुनकर बेचारे बाबू छोटा-सा मुँह लेकर रह गए । कुछ जवाब देते नहीं बना । नर्क को भोगते – भोगते जब काफी समय बीत गया ,तब उन्होंने एक आवेदन-पत्र नर्क के व्यवस्थापक को दिया । लिखा था “हजूर ! लंबे समय से रिश्वत लेने के आरोप में नर्क भोग चुका हूँ। कृपया एक दिन के लिए धरती की सैर करने की अनुमति प्रदान करने का कष्ट करें । ”
व्यवस्थापक महोदय के पास जब आवेदन-पत्र पहुँचा तो उन्होंने सोचा कि चलो ,यह प्रयोग भी किया जाए । उसी समय आवेदन-पत्र को स्वीकृत किया और बाबू को पृथ्वी की ओर रवाना कर दिया ।
मृतक बाबू खुशी से भरा हुआ था । नर्क से चलते ही सबसे पहले अपने पुराने दफ्तर पर पहुँचा। उस कुर्सी पर गया जहाँ वह कई दशकों तक जमा बैठा था और उसने सैकड़ों लोगों से न जाने कितना रुपया रिश्वत के रूप में वसूला था । दफ्तर के अंदर जाकर बाबू ने जब हाल देखा तो वह आश्चर्य में डूब गया । मृतक बाबू तो क्योंकि नर्क से विशेष अनुमति लेकर आया था ,अतः शरीरधारी नहीं था । वह किसी को दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन वह सब को देख सकता था । अतः पूरे दफ्तर में वह घूमता रहा और कोई उसे नहीं देख पाया । उसने देखा कि लोग खुलेआम बाबुओं को रुपयों की गड्डियाँ दे रहे हैं और बिना किसी संकोच के बाबू उन्हें ग्रहण कर रहे हैं । बीच-बीच में अधिकारीगण बाबुओं के पास आते हैं और अपना हिस्सा उनसे माँग कर ले जाते हैं । एक स्थान पर रिश्वत की रेट-लिस्ट शीर्षक से बोर्ड टँगा देखकर तो मृतक बाबू के पैरों से मानों जमीन ही निकल गई । हर काम के रिश्वत के रेट उस बोर्ड पर लिखे हुए थे । कोई रोकने – टोकने वाला नहीं था । पूरा दिन अपने पुराने दफ्तर में आश्चर्य से मृतक बाबू घूमता रहा । जब शाम हुई तो उसका नर्क की ओर वापस लौटने का समय हो गया था । दिन ढलने से पहले ही वह नर्क में पहुंच गया ।
व्यवस्थापक महोदय ने पूछा “क्यों बाबू जी ! क्या देख कर आए ? ”
मृतक बाबू ने निवेदन किया “महोदय मुझे तत्काल स्वर्ग में शिफ्ट करने का कष्ट करें क्योंकि मैं पुण्यात्मा हूँ।”
व्यवस्थापक महोदय चकराए । बोले “ऐसा सुबह से शाम तक में तुमने क्या देख लिया जो तुम स्वयं को पुण्यात्मा कह रहे हो ?”
मृतक बाबू ने उन्हें बताया ” मैं कई दशक पहले जब उसी दफ्तर में बाबू हुआ करता था तो मेज के नीचे से नोट की गड्डी लेता था । किसी कोने में जाकर छिपकर कुछ पैसे ले लेता था । रिश्वत लेते समय मेरे मन में संकोच होता था । आत्मग्लानि और शर्म का भाव होता था । मुझे महसूस होता था कि मैं कोई अपराध कर रहा हूँ। मैं किसी से यह नहीं कहता था कि मैं रिश्वत लेता हूँ। लेकिन अब तो दफ्तर की सभी मेजों पर खुलेआम रिश्वत ली जा रही है । जो जितनी ज्यादा रिश्वत लेता है ,उसे समाज में उतना ही आदर मिल रहा है । ऐसी स्थिति में क्या आप मुझे पुण्यात्मा घोषित नहीं करेंगे तथा कम से कम मेरी बाकी की सजा तो माफ कर ही दीजिए ?”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451