सजल
एक सजल
पदान्त — आते
समान्त –लिखूँ न लिखूँ
मात्रा भार –21
तनिक बताओ वे बातें लिखूँ न
लिखूँ।
मैं मृत्यु से मुलाकातें लिखूँ न लिखूँ।।
रात रोती रही चंदा ढलता रहा।
मै जागती हुई रातें लिखूँ न लिखूँ।।
आँख दुश्मन पर थी हाथ बंदूक थी
मैं फर्ज अपना निभाते लिखूँ न लिखूँ।।
वर्दी उन पर कसी मृत्यु थी बन रही
मैं उनको रक्त बहाते लिखूँ न लिखूँ।।
गोलियाँ बरसी थीं खून दरिया बना
मैं जान उनको लुटाते लिखूँ न लिखूँ।
छलनी छलनी था जिनका सुंदर बदन
उनकी धज्जियाँ उड़ाते लिखूँ न लिखूँ ।
अपनों के लिए जो प्यार उर में बसा
ह्रदय में उसको दबाते लिखूँ न लिखूँ।
सुशीला जोशी, विद्योत्तमा
मुजफ्फरनगर उप्र 🙏🏻🪷