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17 Nov 2024 · 1 min read

सजल

सजल
1222,1222, 1222,1222
एक बूढ़ा व्यक्ति तपती धूप में हाँफते हुए रिक्शा पर सवारी खींच रहा है।

बदन कमजोर है उसका,बुढ़ापे का सताया है,
सवारी खींचता है वो,अयस रिक्शा चलाया है।

तपे है धूप भी भारी, हवाएं गर्म हैं चलती,
चला जाता नहीं फिर भी, बहुत बोझा उठाया है।

हुआ है गात जर्जर सा, पसीना खूब निकले है,
चले तो हांफता है वो, बुरे हालात काया है ।

गरीबी जान लेती है, जहन भी होश खोता है,
सुझाई कुछ नहीं देता, कहर जब भूख ने ढाया।

करे आराम कैसे वो, कमाने हैं उसे पैसे,
कहाँ है भूख की सीमा, नयन अंधेर छाया है।

सीमा शर्मा ‘अंशु’

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