सजल
सजल-12221222,1222 1222
रस-करुण रस-
दृश्य-युद्ध भूमि
मिला क्या युद्ध को कर के, जमाना आज है रोता ,
किसी की जान जाती है,किसी का चैन है खोता।
धरा भी लाल हो जाती, मिसाइल जोर से फटती,
कई मासूम मरते है,पिता भी लाश है ढोता ।
विलग है लोग अपनो से,तबाही रक्स है करती,
हुआ मस्ती जहाँ करती , वहाँ पर मौन है होता ।
पसारा दर्द का रहता, सभी की आँख है रोती,
चिताएं जल रही देखो, कफ़न में जीव है सोता।
किसी ने लाल खोया तो,किसी ने मात खोई है,
कहीं तो हो जरा ‘सीमा’, अरे क्यों युद्ध है बोता ।
सीमा शर्मा ‘अंशु’