सजनाँ बिदेशिया निठूर निर्मोहिया, अइले ना सजना बिदेशिया।
सजनाँ बिदेशिया निठूर निर्मोहिया, अइले ना सजना बिदेशिया।
रोंअत तिवइया कहे सुनऽ मइया, अइले न सजना बिदेशिया।।
हुक उठे मनवाँ, सुन बा भवनवाँ, उसर लागेला सगरो जहानवाँ।
छोड़ि के गइलऽ, निर्मोही भइलऽ, तनिका ना भावेला गहनवाँ।
सुपवा किनाइल ना, ऊखवाँ कटाइल, बुझे ना पिया परदेशिया।
रोंअत तिवइया कहे सुनऽ मइया, अइले न सजना बिदेशिया।।
नयना के कोरवा, भिगावेला लोरवा, हमरो हेराइल बा सनेहिया।
कुहके तिवइया, सुनऽ मोरि मइया, देई देतु मोहे थोड़ नेहिया।
मनितऽ कहनवा तू अइत सजनवा, काटीं बोलऽ कबले कलेशिया।
रोंअत तिवइया कहे सुनऽ मइया, अइले न सजना बिदेशिया।।
छोड़ि के शहरिया बनिती कहरिया, सजना जी बाँस के बहंगिया।
घटवा पऽ अइती, अछतऽ चढ़इतीं, पान फूल फल आ लवंगिया।
छोड़ि देतीं हठवा, सुनऽ लागे घटवा, परबऽ सचिन हऽ ई देशिया।
रोंअत तिवइया कहे सुनऽ मइया, अइले न सजना बिदेशिया।।
✍️ सजीव शुक्ल ‘सचिन’