सजग,सचेत,समर्थ, सबल सदा सही नारी – डी के निवातिया
जन्म लेने से देने तक मात्र नहीं है नारी,
जड़ चेतन से सृष्टि का सार रही है नारी,
स्नेह, शक्ति, ममता, करुणा का सागर,
भू लोक का श्रेष्ठ्तम प्यार यही है नारी !!
नारी सम इस जगत में दूजा आया कौन,
सर्वश्रेष्ठ होने का गौरव यहां पाया कौन ,
किसमें इतनी क्षमता जो नारी को जाने,
मातृत्व का सार जगत में समाया कौन !!
खुद पीछे रह नर को बड़ा बनाती रही नारी,
सागर को अपने ह्रदय में समाती रही नारी,
अतुल्य, अमिट, अथाह प्रेम की मूरत बन,
परिवार के लिए छोटी बन जाती रही नारी !!
कोमल पर कमजोर नहीं कभी रही नारी,
मन उठे द्व्दं का दिखाती शोर नहीं नारी ,
न अबला है, न नादान है,न अनभिज्ञ है,
सजग,सचेत,समर्थ, सबल सदा सही नारी !!
डी के निवातिया