सच
सच
यह सच है
पत्थर की लकीर-सा
जब मिलती हैं सहस्र भुजाएँ
लहलहाने लगते हैं खेत
भर जाते अन्न के भंडार
नहीं रहता कोई भूखा पेट
शौर्य के शिखर होते तैयार
आंख उठा कर कभी नही
देख सकता कोई देश
जब मिलते हैं उन्नत विचार
बांध दी जाती है तब
उच्छृंखल जल की धार
अंधेरे के गर्भ से भी
खींच लाता है कोई उज्जास
चहकने लगते जीवन उदास
शान्ति और सद्भाव की
लिख ली जाती एक किताब
सदियों के लिये बनती मिसाल
आसमानी चांद तारे
बन जाते एक नई धरा
हो जाता है उत्सुक इंसान
उगाने उन पर सुगंध भरे बाग।
पर जब भटक जाती हैं भुजाएं
बढने लगते हैं अपराध
अराजक हिंसा का होने लगता तांडव
उग आते कांटों के जंगल
वहशी क्रूर बर्बर आतंकवाद।
कैसे भुजाओं को भटकने से बचाये
कैसे विचारों को अमृत पिलायें
आओ सोचे विचारे
कैसे पर्यावरण को शुद्ध बनायें।