सच
जिन लोगों को सच चुभता हो ।
उनके जीवन में कैसे शुभता हो।।
जो न सीखेगा अपने इतिहासों से।
कैसे बच पाएगा जग परिहासों से।।
जो अपनी पीढ़ी को भ्रम और झूठ में रखता है।
वह वंशद्रोही तो है, पर पूर्वज कैसे हो सकता है।।
छल, छद्म, झूठ और ईर्ष्या जो बोते है परिवारों में।
अपनी कुंठा, इच्छाओं का जहर भरें परिवारों में।।
तुम प्रेम, त्याग से दूर हुए, परिवार हुआ बेमानी हो।
तुम रावण जैसे स्वार्थी हो और स्वघोषित ज्ञानी हो ।।
जय सियाराम