सच
कोई जीतने की चाहत रखता है,
कोई प्यार की इबादत करता है |
बड़ा कमज़ोर है आदमी,
सोचता है पाने को मंज़िल,
पर हाँथ खाली रखता है ||
ज़िंदगी के मायने अलग है यहाँ,
पर मौत की हकीकत एक है |
झूठ स्वार्थ की माया है ज़िंदगी,
पर मौत की शख्सियत एक है ||
क्या बुरा क्या भला किसको पता,
फिर क्यों सभी को,
अपने ही पैमाने में रखते है लोग |
डर से सच भी न कह सके,
ऐसे डर में क्यों जीते है लोग ||
– सोनिका मिश्रा