सच हो सब इस समय अख़बार जरूरी तो नही
2122-1122-1122-22(112)
सारे नेता ही हो मक्कार जरूरी तो नही
सच हो सब इस समय अख़बार जरूरी तो नही
बिक गया झूठ सरे-राह यूँ बाजार में अब
सच का भी कोई हो बाजार जरूरी तो नही
सब चुनावी घुड़की खूब बजाएँगे अब
अब सब प्रत्याशी हो दमदार जरूरी तो नही
ज़िन्दगी के कई रंग देखने को अब मिले हैं
दिल के सब हो ख़रीदार जरूरी तो नही
हम रहे चाहे मंदिर में या हो मस्ज़िद में तुम
सब रखे लोग दिल में रार जरूरी तो नही
मीडिया भी गई बाज़ार में जबसे अब बिक
यों मिले प्यार लगातार जरूरी तो नही
सर-फिरे लोग ही यहाँ करते है यों खून ख़राबा
सब मुस्लिम ही हो गुनहगार जरूरी तो नही
✍️आकिब जावेद