सच समझने में चूका तंत्र सारा
सवालों में छिपे रहते
आम इंसानों के दर्द
इन्हें हल करके बढ़ाता
इंसान विकास की हद
मुश्किलें तभी सुलझें जब
सवाल हों शीशे से साफ
अन्यथा समाधान खोजने
में इंसान जाता हैं हांफ
सवालों को पहचानना
भी होता नहीं आसान
जो सवालों को पहचान
ले,वो खोज लेता निदान
सवालों में अस्पष्टता करता
अनिश्चितता की ओर इशारा
अधूरा सवाल बताता, सच
समझने में चूका तंत्र सारा
जो आप चाहते हैं कि मिले
समस्याओं का सही हल
समस्याओं की पहचान में
लगाएं बुद्धि, विवेक सकल