सच सच कहना
सच सच कहना,क्या मुझसे मोहब्बत है?
मैं हूं धड़कनों में ये , कहने की चाहत है?
आती हूं क्या मैं रात को तुम्हारे ख्वाबों में?
या पलकें करती खूब,नींद की हिफाजत है?
क्या चाहता है दिल , मुझे हरदम देखने को?
बिन बात मुस्कराना ,क्या अब आदत है?
क्या उंगलियां चाहती है,सुलझायें मेरी जुल्फें?
या झटक देते हो मन को,अरे ये तो वहशत हैं?
इतने सवाल मैं भी आखिर क्यों पूछ रही तुमसे
बता रही हूं ये मोहब्बत मेरी मानो इबादत है।
सुरिंदर कौर